✧ प्रस्तावना ✧
रावण को सामान्यतः लोग केवल राक्षस, अहंकारी और हिंसक मानते हैं।
पर उसकी कथा में एक और परत छिपी है —
विद्वान, भक्त और प्रयोगशील रावण की।
उसकी साधना ने दिखाया कि मनुष्य असंभव को भी संभव बना सकता है।
पर उसकी सबसे बड़ी भूल यही थी कि उसने मृत्यु को बाँध लिया —
और मृत्यु ही तो मोक्ष का द्वार है।
बल्कि विज्ञान, दर्शन और आत्मा की दृष्टि से पढ़ा गया है।
यहाँ रावण केवल खलनायक नहीं,
बल्कि विद्वान और भूल कर बैठा साधक है।
उसने मृत्यु को टालकर सृष्टि के नियम को चुनौती दी।
इस ग्रंथ में रावण की कथा को केवल पौराणिक आख्यान की तरह नहीं,
राम और रावण की भिड़ंत केवल अच्छाई और बुराई की नहीं,
बल्कि सिद्धि और मुक्ति, अहंकार और आत्मज्ञान,
स्थिरता और रूपांतरण की है।
विद्या और शक्ति का भूखा,
और हर मनुष्य में एक राम भी है —
जो आत्मा और मुक्ति की ओर बुलाता है।
रावण की सिद्धि, उसकी भूल, और उसकी मुक्ति की चाह।
हर मनुष्य के भीतर एक रावण है —
यह ग्रंथ उसी द्वंद्व का वृतांत है।
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲