अध्याय
1. सेक्स का असली अर्थ – दुःख का निर्वहन
(सेक्स क्यों केवल जमा हुए दुःख को छोड़ना है, और इसे आनंद क्यों समझ लिया गया है)
2. आनंदित व्यक्ति और ब्रह्मचर्य – क्यों भीतर आनंद हो तो सेक्स की आवश्यकता घटती है
(ब्रह्मचर्य का नया अर्थ: स्त्री से दूरी नहीं, बल्कि भीतर दुःख न जमा करना)
3. सेक्स और बलात्कार का अनुभव – जब चयन भी हिंसा लगता है
(सुखी व्यक्ति के लिए सेक्स क्यों बलात्कार-सा लगता है)
4. सेक्स बनाम प्रेम – दुःख छोड़ना और प्रेम बाँटना
(सेक्स है निर्वहन, प्रेम है दान — दोनों का गहरा भेद)
5. पुरुष और स्त्री का अंतर – संग्रह बनाम त्याग
(पुरुष जमा करता है, स्त्री छोड़ देती है — इसलिए दोनों की प्रकृति अलग है)
6. स्त्री की पवित्रता – दुःख न टिकने का रहस्य
(स्त्री क्यों भीतर से पवित्र है और क्यों उसे पूजा से दूर रखा गया)
7. माहवारी और प्रकृति की व्यवस्था
(स्त्री का स्वभाविक शुद्धिकरण — प्रकृति द्वारा दिया गया संतुलन)
8. सच्चा प्रेम क्या है – आनंद का प्रसाद
(सुखी व्यक्ति ही प्रेम दे सकता है, और वही असली कृपा है)
9. धर्म और पाखंड – गुरु और प्रवचन का व्यापार
(प्रवचन के नाम पर दुःख का निर्वहन और धार्मिक व्यापार)
10. सच्चा गुरु और फूल की सुगंध
(आनंदित गुरु का कोई चुनाव नहीं होता, वह फूल जैसा बस सुगंध देता है)
