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अध्याय 10 — रावण: मेरी दृष्टि में


रावण मूर्ख नहीं था।
वह विद्वान और बुद्धिमान था।
उसका अहंकार सात्विक था — विद्या और तपस्या से उपजा गर्व।
उसने सीता का हरण वासना से नहीं,
बल्कि राम को बुलाने के लिए किया।
उसका लक्ष्य मुक्ति था,
जिसे उसने मृत्यु से रोका, और फिर राम के हाथों पाया।

दुनिया उसे अहंकारी राक्षस मानती है।
मेरी दृष्टि में वह विद्वान था,
जिसने अपनी भूल से सीखा और
अंततः राम के माध्यम से मुक्ति पाई।



समापन

रावण की कहानी केवल असुर की हार नहीं,
बल्कि विद्वान की भूल और मुक्ति की चाह भी है।
हर मनुष्य के भीतर वही द्वंद्व है —
शक्ति की भूख और आत्मा की प्यास।
आज का प्रश्न भी वही है:
क्या हम रावण की तरह सिद्धि में रुकेंगे,
या राम की तरह आत्मा में विलीन होंगे?

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